नारायण भरत भगवान की परिक्रमा से मिलता है बदरीनाथ धाम के दर्शनों का पुन्य

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ऋषिकेश, उत्तराखंड में बैसाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को पड़ने वाले अक्षय तृतीया पर्व का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथो और पुराणों के अनुसार आज ही के दिन सतयुग का प्रारभ हुआ था।वैष्णव  परम्परा से जुड़े पौराणिक मंदिरों में इस दिन भगवान विष्णु के विशेष पूजन-आराधना का विधान है। ऋषिकेश के 7 -8वीं सदी के पौराणिक भरत मंदिर में आज के दिन 108 परिक्रमा करने से भगवान बदरीनाथ के दर्शनों के समान पुन्य का लाभ मिलता है। सातवी शताब्दी में शन्कराचार्य द्वारा पुनह स्थापित ऋषीकेश नारायण भरत मंदिर से जुडी एक प्राचीन मान्यता आज भी मानी जाती है।

अक्षय तृतीया के दिन सुबह से ही यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगती है। मान्यता है कि जो लोग भगवान बदरीनाथ के दर्शन नहीं कर पाते वो आज के दिन ऋषिकेश नारायण की परिक्रमा करके वहा के सामान पुन्य लाभ अर्जित करते है। ऋषीकेश के इस मंदिर पर लगातार मुगलों का आक्रमण होता रहा, मुगलों ने यहाँ की मूर्तियों को खंडित भी किया, शंकराचार्य ने इस मंदिर की पुनह प्राण प्रतिस्था कर यहाँ मूर्ति स्थापित की। यहाँ की ऋषीकेश नारायण की मूर्ति और बदरीनाथ भगवान की मूर्ति दोनों ही एक पाषणशिला से निर्मित है।

आज के दिन देश के कोने कोने से आकर श्रद्धालु यहाँ परिक्रमा करते है और भगवान् बदरीनाथ के दर्शनों  का पुन्य प्राप्त करते है। आज का दिन दो धामों गंगोत्री और यमनोत्री के कपार्ट खुलने के साथ-साथ यात्रा के शुभारम्भ का भी दिन माना जाता है, आज ही यात्री गंगा स्नान कर चार धाम की यात्रा का शुभारम्भ ऋषिकेश नारायण का आशीर्वाद लेकर शुरु करते है।