आज सुबह, जैसे ही वृक्ष मित्र विश्वेश्वर दत्त सकलानी के निधन की खबर फैली, शोक संवेदनाएं उमड़ पड़ीं। पौधरोपण करने के बाद पचास लाख से अधिक वृक्षों का पालन-पोषण करने वाले, एक छोटे से किसान विश्वेश्वर दत्त सकलानी पुजार गाँव के रहने वाले थे, जो कि देहरादून से लगभग 50 किलोमीटर दूर है।
सकलानी ने 1948 में अपने भाई को खोने के बाद पेड़ लगाना शुरू किया। अपने भाई की मौत से दुखी और परेशान, वृक्ष मित्र शांति की तलाश में पहाड़ियों पर घूमते थे, अपने घर के पास एक बंजर जमीन पर एकोर्न लगाकर शुरुआत करी, सकलानी धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए, और पिछले लगभग पचास सालों में सकलानी ने 100 हेक्टेयर भूमि में पेड़ लगाये, जिसमें – मुख्यतः ओक, रोडोडेंड्रोन, देवदार और अखरोट के पेड़ थे।
सकलानी के प्रेम के परिश्रम ने न केवल उसे अधिक निर्मल बना दिया, बल्कि अपने असंख्य रूपों में उन्होंने अपने क्षेत्र में एक बार फिर जीवन वापस ला दिया।पहाड़ों के कुछ ऐसे क्षेत्र, जो एक बार अंधाधुंध लकड़ी की कटाई के कारण बदनाम हो गए थे वह एक बार फिर हरे-भरे हो गए। वृक्षों की जड़ों की मजबूती के कारण, सीढ़ीदार खेतों की मिट्टी स्थिर हो गई और एक बार फिर से हरियाली की धाराएँ बहने लगीं।
ग्रामीणों ने चारे और ईंधन के पारंपरिक स्रोतों को बहाल किया, और यहां तक कि जानवर व पक्षी भी क्षेत्र में लौट आए। उनकी अद्भुत उपलब्धियों की पहचान करने के लिए, सरकार ने 1986 में सकलानी को प्रतिष्ठित इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार दिया। सकलानी ने देश की हर बंजर भूमि पर पेड़ लगाने का जोश दिखाया जिसके लिए उन्हें कई ग्रामीणों और नौकरशाहों के साथ संघर्ष भी करना पड़ा। लेकिन उनकी पारदर्शी ईमानदारी और उनके काम के लाभों ने धीरे-धीरे लोगों के दिलों को जीत लिया।सकलानी की इस मुहिम ने इस क्षेत्र के अन्य व्यक्तियों और संगठनों को अपने स्वयं के वृक्षारोपण कार्यक्रमों को शुरु करने के लिए प्रेरित किया।
कुछ साल पहले ट्री मैन ने हमसे कहा था कि, ‘अगर आप जमीन को पेड़ों से नहीं ढँकेंगे,’ उन्होंने चेतावनी दी कि, ‘मिट्टी धुल जाएगी और फिर आपके लिए या किसी के लिए और कोई जमीन नहीं बचेगी।”
आज वृक्ष मित्र अपने बनाये जंग में समा गये और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर गये।
जन्म: 2 जून 1922 – मृत्यु: 18 जनवरी 2019