उत्तरकाशी के तीन में से दो पर त्रिकोणीय मुकाबला

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उत्तरकाशी

गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों का उद्गम उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला है। कहा जाता है कि राज्य की सत्ता की चाबी भी इसी जिले के पास है। जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं। इनमें पहली विधानसभा सीट गंगोत्री को जिसने जीत लिया, उसी पार्टी की सरकार प्रदेश में बनती है। पुरोला विधानसभा सीट जीतने वाले दल को विपक्ष में बैठना पड़ता है। इसलिए इस बार इन सीटों पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।

जिले के तीन सीट में से इस बार दो सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। गंगोत्री सीट को आम आदमी पार्टी ने दिलचस्प बना दिया है। आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरा कर्नल कोठियाल यहां से चुनावी जंग लड़ रहे हैं। इस कारण यहां भाजपा-कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी ने लड़ाई को त्रिकोण बना दिया है।

यमुनोत्री सीट पर भी इस बार मुकाबला त्रिकोणीय रहने वाला है। यहां कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर संजय डोभाल निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। संजय डोभाल के मैदान में उतरने से यहां का दंगल दिलचस्प मोड़ ले लिया है। ऐसा होने से प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के लिए जीत की राह आसान नहीं रह गई है। पुरोला में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है।

जिले का सबसे हॉट सीट गंगोत्री है। यहां से आम आदमी पार्टी के सीएम चेहरा रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल के लड़ने से भाजपा-कांग्रेस के लिए मुकाबला कठिन हो गया है। कर्नल कोठियाल ने इस क्षेत्र को अपना कर्म भूमि बनाया है। राजनीति में आने से पहले वह यहां के युवाओं के बीच काम करते रहे हैं। प्रदेश भर के हजारों युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें सेना में भर्ती करवाया है। इससे युवाओं के बीच इनकी अच्छी पैठ है। आम आदमी पार्टी भी यहां पूरा जोर लगा रही है। पार्टी का आईटी टीम इस सीट पर लंबे समय से कर कर रही है।

ईमानदार छवि और काम उनका मजबूत पक्ष है तो जाति पक्ष उन्हें काम जोर बनाता है। इसका कारण यह है कि इस सीट पर अभी तक किसी ब्राह्मण को जीत नहीं मिली है। राज्य बनने के बाद से इस पर ठाकुर बिरादरी का कब्जा रहा है। पिछले चुनाव भाजपा से नाराज होकर सूरत राम नौटियाल ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, लेकिन वे तीसरे नंबर पर रहे थे। पहला चुनाव सीपीआई के टिकट पर कमला राम नौटियाल ने चुनाव लड़ा, तब वे दूसरे नंबर पर रहे थे। राज्य बनने से पहले यह सीट उत्तरकाशी के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के समय भी किसी ब्राह्मण ने यहां जीत हासिल नहीं किया है। तब कारण इसका रिजर्व सीट होना माना जाता था।

इस बार भी कांग्रेस और भाजपा ने ठाकुर जाति के उम्मीदवार को टिकट दिया है। कांग्रेस से दो बार विधायक रहे विजयपाल सजवाण पांचवीं दफे भाग्य आजमा रहे हैं। जबकि भाजपा ने पूर्व ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत समिति सुरेश चौहान को उतरा है। सुरेश चौहान कांग्रेस में भी रह चुके हैं। इनका यह पहला चुनाव है लेकिन वे पिछले कई महीनों से तैयारी कर रहे थे। आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरा का यहां से चुनाव मैदान में रहने से जीत का अंतर कम होने की पूरी संभावना है। मुकाबला कांटे की होगी।

यमुनोत्री सीट पर कांग्रेस से टिकट कटने पर पार्टी के ओबीसी मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय डोभाल ने निर्दलीय ताल ठोका है। भाजपा ने यहां अपने निवर्तमान विधायक केदार सिंह रावत को उतारा है। कांग्रेस से दीपक बिजल्वाण चुनाव मैदान में है। बिजल्वाण जिला पंचायत अध्यक्ष रहे हैं। अध्यक्ष रहते इन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। जिस कारण इसी साल इन्हें अध्यक्ष पद से हटाकर जांच बैठाई गई है। विपक्षी पार्टी इनके भ्रष्टाचार को मुद्दा उठा रहे हैं। इस लिए एक तरह से कहा जय तो कांग्रेस यहां बैकफुट पर है।

कांग्रेस उम्मीदवार संजय डोभाल पिछले चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था। उस चुनाव में डोभाल कांग्रेस से भाजपा में गए केदार सिंह रावत से हार गए थे। वे दूसरे नंबर पर रहे थे। इसलिए वह फिर से टिकट चाह रहे थे। नहीं मिलने पर वे निर्दलीय मैदान में हैं। वे कहते हैं कि केदार सिंह के भाजपा में जाने के बाद यहां कांग्रेस को अपनी मेहनत से खड़ा किया है। फिर पार्टी मेरा टिकट काटकर एक भ्रष्ट व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया है।

जातीय स्थिति देखे तो यहां सबसे ज्यादा ठाकुर मतदाता हैं। इनकी संख्या करीब 55 फीसदी है। इसके बाद अनुसूचित जाति की संख्या है। वे तकरीबन 26 फीसदी हैं। इनके बाद ब्राह्मण मतदाता हैं। ब्राह्मणों की आबादी 18 फीसदी के करीब है।

तीसरी सीट पुरोला में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। एक तरह से कहा जाए तो इस सीट पर दोनों पार्टी ने उम्मीदवारों का अदला-बदली किया है। यहां भाजपा ने कांग्रेस से कुछ दिन पहले पार्टी में आये दुर्गेश्वर लाल को उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस ने भाजपा से दो बार विधायक मालचंद को पुरोला के दंगल में उतरा है। दुर्गेश्वर लाल पिछला चुनाव निर्दलीय लड़े थे। उस चुनाव में वे तीसरे स्थान पर रहे थे। जीत के लिए उन्हें करीब 4000 वोट और चाहिए था। यहां दोनों उम्मीदवार के सामने चुनौती है।