डोईवाला सीट से विधायक बने त्रिवेन्द्र सिंह रावत हमेशा पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के करीब रहे हैं। संगठन ही नहीं केन्द्र सरकार के मुखिया नरेन्द्र मोदी भी त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सादगी और उनकी क्षमता के कायल हैं। यही कारण है कि उन्हें यूपी के चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस का प्रभारी नियुक्त किया गया था।इसके अलावा त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के कृषि मंत्री के रुप में भी काम किया है।उत्तराखंड में चुनाव खत्म होने के बाद पार्टी ने कई नेताओं को उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान सौंपी थी। जिसमें विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत ,तीर्थ सिंह रावत, रमेश पोखरियाल निशंक और बीसी खंडूरी को यूपी में प्रचार के लिए बुलाया गया था। सबसे बड़ी जिम्मेदारी मिली त्रिवेंद्र सिंह रावत को । उन्हें पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रचार कर बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने का काम सौंपा गया। रावत इसे पहले छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रभारी भी रह चुके हैं। इसके साथ ही कई राज्य के चुनावों में वो काम कर चुके हैं। रावत को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देते समय ही इस बात का आभास हो गया था कि यदि उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनती है तो त्रिवेन्द्र सिंह रावत सीएम बनाये जा सकते हैं।
गौरतलब है कि साल 2012 में सिंह चुनाव हार गए थे, फिर उपचुनाव भी हार गए थे। हालांकि, सिंह को पार्टी संगठन में हमेशा महत्व दिया गया और उन्हें झारखंड इकाई का बीजेपी इंचार्ज बनाया गया।
- 1979 में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ में शामिल हुए।
- 1981 में संघ के प्रचारक के रुप में प्रतिज्ञा ली।1981 में आरएसएस के प्रचारक की तरह लैंड्सडाउन तहसील में काम किया।
- 1983-90 तक राज्य में प्रचारक के रुप में काम किया।
- 1997-2002 तक पार्टी में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में संगठन सचिव के तौर पर काम किया।
- 2002 में डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के विधायक होने के साथ साथ एमडीडीए के कार्यप्रणाली में बदलाव के लिये कापी मेहनत की।
- 2007 में एक बार फिर डोईवाला क्षेत्र से विधायक रहे,जिसमें उन्होंने कृषि,कृषि शिक्षा,एनिमल हस्बेन्ड्री,डेरी,डिजास्टर मैनेजमेंट,हार्टिकल्चर,लैग्वेज आदि क्षेत्रों में काम किया।
- 2013 में रावत को बीजेपी का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया। इसके साथ ही पार्टी ने उन्हें अमित शाह के साथ उत्तर प्रदेश का सह प्रभारी भी बनाया।
- 2014 लोक सभा चुनावों में नये और युवा वोटरों को पार्टी से जोड़ने के लिये बनाई गई समिति का भी रावत हिस्सा रहे।
प्रदेश के चर्चित ढैंचा बीज घोटाले की जांच के लिए गठित त्रिपाठी आयोग ने इस मामले में त्रिवेन्द्र सिंह से सीधी पूछताछ की थी। त्रिवेन्द्र सिंह रावत के विरोधी इसी को आधार बनाकर सीएम पद की रेस से उन्हें बाहर निकालना चाहते थे। इसके अतिरिक्त लगातार दो बार विधायक का चुनाव हार जाना भी उनके खिलाफ जा रहा था। परंतु केन्द्रीय आला कमान ने इन तर्कों को खारिज कर दिया।