देहरादून, उत्तराखंड कांग्रेस में नेता अपनी ढपली बजा रहे हैं और अपना राग अलाप रहे हैं। पार्टी संगठन की जगह निजी एजेंडे को सामने रखकर नेता काम कर रहे हैं। यह वजह है कि कांग्रेस एक पार्टी के तौर पर सड़कों पर कम नजर आ रही है, जबकि उसके नेता व्यक्तिगत तौर पर विभिन्न आंदोलनों और अभियानों से जुड़कर अपअनी सियासत चमका रहे हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह इस स्थिति से नाखुश बताए जा रहे हैं।
सबसे पहले उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे बडे़ नेता हरीश रावत की। जिस दिन से प्रीतम सिंह अध्यक्ष बने हैं, तब से हरीश रावत पार्टी के समानांतर अपने कार्यक्रम चला रहे हैं। उनकी आम पार्टी, मशरूम पार्टी जैसे कार्यक्रम तो चर्चित हुए ही, रविदास, वाल्मीकि मंदिरों में पूजा अर्चना और विभिन्न मसलों पर उपवास धरने जैसे कार्यक्रमों ने भी सुर्खियां बटोरी। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय वनाधिकार आंदोलन के नाम पर अपना अलग अभियान छेडे़ हुए हैं।
हाल ये है कि पार्टी जब पिथौरागढ़ उपचुनाव की चुनौती से दो चार है, कांग्रेस के बडे़ नेता वहां ताकत लगाने की जगह अपने कार्यक्रमों में सक्रिय हैं। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना, जोत सिंह बिष्ट भी समानांतर कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। हालांकि कांग्रेस के नेताओं का तर्क है कि चाहे वह किसी भी रूप में कार्यक्रमों में सक्रियता बना रहे हैं, लेकिन उससे आखिरकार फायदा कांग्रेस को ही मिल रहा है।
दरअसल, कांग्रेस के भीतर अनुशासन की धज्जियां अक्सर उड़ती रही हैं। अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब सोशल मीडिया में पार्टी के कुछ नेताओं ने अपने अध्यक्ष के खिलाफ ही टिप्पणी कर दी थी। मगर किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अनुशासनात्मक कार्रवाई जिन एक दो मामलों में हुई भी है, उनमें भी पहले ये देखा गया है कि जद में आने वाले नेता किस गुट से ताल्लुक रखते हैं। पार्टी के भीतर एक गुट ऐसा है, जो प्रीतम सिंह की मुखालफत में जुटा है। निजी एजेंडे पर नेताओं की सक्रियता को भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है।
प्रदेश कांग्रेस मेंद चल रहे घमासान और अनबन को लेकर उत्तराखंड प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह का कहना है कि कांग्रेस के नेता जन समस्याओं से सीधे जुड़ रहे हैं और पार्टी के कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं, उनकी जानकारी में प्रदेश के नेताओं में मनमुटाव की कोई जानकाी नहीं आई है।