साहित्यिक चोरी पर रोक को यूजीसी का कानून

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    अनुसंधान और शोध के क्षेत्र में चोरी अब भारी पड़ेगी। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) ने साहित्यिक चोरियों को रोकने के लिए कड़ा रुख अपनाया है। आयोग ने इसके लिए खास तौर पर नया रेगूलेशन तैयार किया है। नए नियमों के तहत जहां एक ओर ऐसे मामलों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी, वहीं शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान, अध्ययन, परियोजना के प्रति जिम्मेदार आचरण आदि को लेकर भी शैक्षणिक जागरुकता फैलाई जाएगी। अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रजुएट स्तर पर इसे पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाएगा।

    बीते कुछ वक्त में रिसर्च आदि में शोधकर्ताओं की कॉपी-पेस्ट की बढ़ती प्रवृत्ति के तमाम मामले सामने आ रहे थे। इसे रोकने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी), आॅल इंडिया काउंसिल फोर टेक्निकल एजुकेशन(एआईसीटीई) समेत तमाम परिषदों ने कई नियम भी बनाए लेकिन बावजूद इसके कंटेंट चोरी के मामलों पर अंकुश नहीं लग पाया। इसी को देखते हुए अब यूजीसी ने ऐसे मामलों के सामने आने पर कड़ी कार्रवाई करने का फैसला किया है। नए रेगूलेशन में साहित्यिक चोरी को लेकर कड़े प्रावधान भी निर्धारित किए गए हैं।

    आयोग का मानना है कि संस्थानों में ऐसे कृत्यों पर लगाम लगाना बेहद जरूरी है। आयोग ने नए रेगूलेशन में कहा है कि संस्थानों में अनुसंधान आदि कार्यो में छात्रों, फैकल्टी व अन्य स्टाफ नियम कायदों आदि को लेकर शुचिता बनाए रखना बेहद जरूरी है। ऐसे में संस्थानों में इसे लेकर जागरुकता लानी होगी। इसके अलावा, संस्थानों में साहित्यिक चोरी का पता लगाने और उसे रोकने के लिए तंत्र स्थापित करना होगा। ऐसे मामलों में छात्र, फैकल्टी या कर्मचारियों को दंडित करने का कार्य भी करना होगा।

    पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाएगा ईमानदारी का पाठ
    आयोग के नए रेगूलेशन के अनुसार अब संस्थानों में एकेडमिक इंटीग्रिटी को पाठ्यक्रम में भी पढ़ाया जाएगा। इसके लिए संस्थानों को अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट में अनिवार्य रूप से इसे शामिल करना होगा। साथ ही एमफिल और पीएचडी स्कॉलरों के लिए भी अनिवार्य रूप से पब्लिकेशन एथिक्स को कोर्स वर्क का हिस्सा बनाया जाएगा। वर्कशॉप व सेमिनार आदि के माध्यम से छात्रों और एकेडमिक स्टाफ को साहित्यिक चोरियों के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक किया जाएगा। साहित्यिक चोरियों की पहचान करने और पकड़ने के लिए छात्रों व कर्मचारियों को संबंधित आधुनिक तकनीकि और टूल का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा छात्र, फैकल्टी, कर्मचारी और शोधकर्ता को अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता रजिस्ट्री प्रणाली पर पंजीकृत किए जाने को लेकर भी संस्थानों द्वारा प्रेरित करना होगा।

    उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीके गर्ग ने बताया कि शोध कार्यों में शोधकर्ताओं द्वारा कामचोरी की जाती है। इसके साथ किसी अन्य के शोध से कंटेंट को चोरी कर अपने शोध में उपयोग किया जाता है। यह अपराध है। आयोग इसे लेकर सख्ती के मूड में है। इस कदम से साहित्यिक चोरियों पर लगाम लगेगी।

    संस्थानों को दिए निर्देश 
    -संस्थानों को साहित्यिक चोरियों को रोकने के लिए तैयार करना होगा सॉफ्टवेयर।
    -किसी भी अनुसंधान, रिसर्च पेपर या अन्य शोध के जमा करने के समय देनी होगी अंडरटेकिंग।
    -एमफिल, पीएचडी स्कॉलरों को उनके शोध की साहित्यिक जांच के लिए टूल उपलब्ध कराए जाएं ताकि किसी भी प्रकार से संबंधित सामग्री साहित्यिक चोरी से मुक्त हो।
    -सामग्री को साहित्यिक पहचान उपकरण के माध्यम से जांचा गया है इसे लेकर संबंधित शोधकर्ता को इसका पूरा दायित्व लेना होगा।
    -संस्थानों को चोरियों को रोकने के लिए पॉलिसी तैयार कर संबंधित विश्वविद्यालय समिति से अनुमोदित कराना होगा।
    -रिसर्च सुपरवाइजर को शोधकर्ता की शोध सामग्री साहित्यिक चोरी से मुक्त है, इसके लिए प्रमाण पत्र देना होगा।
    -आयोग की आॅनलाइन लाइब्रेरी इंफ्लिबनेट पर शोधकर्ता को शोध आदि की सॉफ्ट कॉपी अनिवार्य रूप से अपलोड करनी होगी।
    -सभी संस्थान शोध, अनुसंधान, रिसर्च पेपर, थीसिस, डिजर्टेशन आदि का अपनी वेबसाइट पर संस्थागत रूप से संग्रह करेंगे।
    -साहित्यिक चोरी का मामला सामने आने पर एकेडमिक मिसकंडक्ट पैनल (एएमपी)द्वारा जांच की जाएगी।
    -प्लेगियारिज्म डिसिपिलिनेरी अथॉरिटी(पीडीपी) को जांच सौंपी जाएगी। इसके बाद कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।

    तीन लेवल पर होगी कार्रवाई 
    प्लेगियारिज्म डिसिपिलिनेरी अथॉरिटी(पीडीपी) द्वारा सहित्यिक चोरी की पुष्टि होने पर संबंधित छात्र, फैकल्टी या कर्मचारी के खिलाफ तीन लेवल पर कार्रवाई की जाएगी। आयोग के रेगूलेशन के अनुसार तीन अलग अलग श्रेणी निर्धारित की गई। इसमें चोरी के प्रतिशत के आधार पर दंड निर्धारित किया जाएगा।

    छात्रों पर यह होगी कार्रवाई 
    लेवल 1: 10% से 40% साहित्यिक चोरी- इस मामले में छात्र को किसी भी प्रकार से कोई अंक या क्रेडिट प्रदान नहीं किया जाएगा। साथ ही छह महीने के अंदर दोबारा साहित्यिक चोर से मुक्त शोध सामग्री जमा कराने का मौका दिया जाएगा।
    लेवल 2: 40% से 60% साहित्यिक चोरी- ऐसे मामले में संबंधित छात्र को कोई अंक या क्रेडिट प्रदान नहीं किया जाएगा। साथ ही शोध पुन: जमा करने के लिए अधिकतम 18 महीने का समय दिया जाएगा।
    लेवल 3: 60% से अधिक की साहित्यिक चोरी- ऐसे प्रकरण में संबंधित छात्र को कमेटी द्वारा कोई अंक या क्रेडिट प्रदान किया जाएगा। साथ ही मामले की गंभीरता को देखते हुए रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर दिया जाएगा।

    फैकल्टी व स्टाफ पर यह होगी कार्रवाई
    लेवल 1: 10% से 40% साहित्यिक चोरी- मामले में मैनूस्क्रिप्ट (हस्तलिपी) वापस लेने को कहा जाएगा। साथ ही किसी भी प्रकार के प्रकाशन पर एक वर्ष का प्रतिबंध।
    लेवल 2: 40% से 60% साहित्यिक चोरी- मामले में मैनूस्क्रिप्ट वापस लेने को कहा जाएगा। किसी भी प्रकार के प्रकाशन पर दो वर्ष के प्रतिबंध के साथ ही एमफिल या पीएचडी स्कॉलर के गाइड के रूप में कार्य करने पर प्रतिबंध।
    लेवल 3: 60% से अधिक की साहित्यिक चोरी- अगले दो साल तक वेतनमान में वृद्धि पर रोक। प्रकाशन के लिए दी गई मैनूस्क्रिप्ट स्वीकार नहीं की जाएगी। तीन वर्ष तक प्रकाशन पर प्रतिबंध व एमफिल या पीएचडी स्कॉलर के गाइड के रूप में कार्य करने पर 3 वर्ष का प्रतिबंध।