किसी जमाने में पर्वतीय जनभावनाओं की आवाज माने जाने वाला उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) अब सियासी सीन से तकरीबन गायब हो गया है। न वह गैरसैंण स्थायी राजधानी, आंदोलनकारियों के हक जैसे मुद्दों पर मुखर है और न ही स्थानीय बुनियादी मसलों पर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करता दिख रहा है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाजपा और कांग्रेस के साथ सत्ता में भागीदारी यूकेडी को बहुत नुकसान पहुंचा गई है। तीसरे विकल्प के तौर पर यूकेडी की दावेदारी पिछले दस सालों में बहुत कमजोर पड़ गई है।
– न पर्वतीय जनभावनाओं, न स्थानीय मुद्दों पर दिख रही मुखर
-भाजपा, कांग्रेस के साथ सत्ता में भागीदारी पड़ रही अब महंगी
यूपी के जमाने में यूकेडी के एक समय तीन विधायक जीत कर आए थे। राज्य बनने के बाद काफी समय तक विधानसभा में उसका प्रतिनिधित्व होता रहा, लेकिन 2017 के चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। एक जमाने में उसके बड़े नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रीतम सिंह पंवार जीते तो सही, लेकिन निर्दलीय बतौर। 70 सीटों के चुनाव में यूकेडी की झोली खाली रह गई। इससे पहले, यूकेडी ने 2007 में भाजपा की सरकार बनने में उसे सहयोग किया और पार्टी के कोटे से दिवाकर भट्ट राजस्व, खाद्य आपूर्ति जैसे विभागों के मंत्री बने।
इसके बाद, 2012 में कांग्रेस सत्ता में आई, तो प्रीतम सिंह पंवार को पार्टी के कोटे से शहरी विकास और आवास जैसे अहम विभागों का मंत्री बना दिया गया। यूकेडी के आम कार्यकर्ता की आज भी शिकायत है, जो नेता सत्ता के साथ गया, उसने पलटकर पार्टी की तरफ नहीं देखा। इसी वजह से विधायक प्रीतम सिंह पंवार आज यूकेडी के नहीं, बल्कि निर्दलीय विधायक है। दिवाकर भट्ट देवप्रयाग सीट से चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी में अध्यक्ष बन गए।
यूकेडी अपने भीतर मौजूद सियासी शून्यता को तोड़ने का रास्ता तलाश रही है, लेकिन कामयाब नहीं हो पा रही है। गैरसैंण में कोई सत्र आयोजित न करने के मामले मे भी वह कुछ नहीं कर पाई। न ही राज्य आंदोलनकारियों को आऱक्षण कें मसले पर वह कुछ कर पा रही है। यूकेडी का संगठन कमजोर स्तर पर है और उसके बड़े नेताओं पर कांग्रेस और भाजपा की निकटता की इस कदर छाप लग गई है कि वह इन दोनों से अलग दिखकर संघर्ष नहीं कर पा रही है। यूकेडी अध्यक्ष दिवाकर भट्ट का कहना है कि दल में भाजपा और कांग्रेस का विकल्प बनने का पूरा माद्दा है। पार्टी को नए सिरे से खड़ा किया जा रहा है।