उत्तरकाशी जनपद के सेब व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए जिला उद्यान विभाग द्वारा अल्ट्रा हाई डेंसिटी फार्मिंग तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। इसके तहत छोटे क्षेत्र में अत्याधिक मात्रा में सेब के पौधे लगाए जाएंगे। जिससे कम भूमि वाले किसान भी अब सेब उत्पादन के क्षेत्र में कदम रख सकेंगे। इस तकनीक के तहत व्यावसायिक प्रजाती के सुपर चीप, रेड चीप, गेल गाला, स्कारलेट गाला सेब उगाए जा सकते हैं। जिसे बेचकर काश्तकार कम लागत में दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं। राज्य योजना के अंतर्गत लागू इस प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने के लिए किसानों को 80 प्रतिशत सब्सिडी भी प्रदान की जा रही है।
सहायक उद्यान अधिकारी एनके सिंह ने बताया कि, “अभी तक 20 नाली भूमि में सेब के केवल 100 पेड़ ही लगाए जाते थे लेकिन अल्ट्रा हाई डेंसिटी (अत्याधिक घनत्व) तकनीक का प्रयोग करने से काश्तकार कम क्षेत्र में बहुत ज्यादा पेड़ लगा सकते हैं। जिसमें किसान की लागत में कमी आने के साथ ही उसका मुनाफा कई गुना बढ़ जाएगा। इस तकनीक के तहत पौधों के रुट स्टॉक (मूल वृंत) में बदलाव लाकर पेड़ के आकार को छोटा कर दिया जाता है, जिससे पेड़ केवल ढाई से तीन फुट की ऊंचाई तक ही बढ़ता है।”
आमतौर पर सेब के पेड़ में फल आने में चार से पांच साल तक का समय लग जाता है लेकिन इन पेड़ों में एक साल बाद ही फल आने लगते हैं।योजना के पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर मोरी क्षेत्र के देवजानी गांव में इस तकनीक का प्रयोग शुरू किया गया है। यहां पर विभाग द्वारा काश्तकार एसएस रावत की 20 नाली भूमि में 1100 सेब के पौधे लगाए हैं। करीब 12 लाख के इस प्रोजेक्ट के लिए 80 प्रतिशत धनराशी विभाग तथा 20 प्रतिशत धनराशी काश्तकार द्वारा लगाई गई है।
इसमें विभाग द्वारा सोलर फैंसिंग, ओलावृष्टी से बचाव के लिए सुरक्षा जाल, टपक सिंचाई यंत्र आदि भी लगाए गए हैं। आराकोट, नौगांव क्षेत्र के कुछ किसानों के यहां भी इस योजना के तहत कार्य किया जाएगा। उन्होंने बताया कि अगर किसान इस तकनीक को अपनाते हैं तो वे कम खर्च में ही बगीचे की सुरक्षा, सिंचाई, खाद, दवाई आदि कार्य कर उच्च गुणवत्ता के अधिक फल प्राप्त कर सकते हैं।