राज्य स्थापना दिवस: पहले संगीन से गला काटा, फिर गोली भी मारकर किया शहीद

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नौ नवंबर यानी उत्तराखंड की राज्य स्थापना का दिन है। यह दिन अनायास ही राज्य आंदोलनकारियों को दो और तीन अक्टूबर 1994 का दिन और उस दिन की विभीषिका को याद दिला देता है। इन दो दिनाें को याद कर आज भी उस दिन के प्रत्यक्षदर्शियों को आत्मा कांप जाती है।

दो अक्टूबर 1994 का दिन उत्तराखंड के राज्य आंदोलन के इतिहास का सबसे बड़ा काला दिन था। लेकिन इसके अगले दिन नैनीताल में जो हुआ वह भी कम वीभत्स नहीं है। उस दिन को याद कर इस मामले में काफी दिनों तक सीबीआई की जांच के दायरे में रहे और बकौल उनके सीबीआई के एक हत्यारे अधिकारी को नौकरी से बर्खास्त कराने वाले वयोवृद्ध राज्य आंदोलनकारी और संस्कृतिकर्मी सुरेश गुरुरानी आज भी सिहर उठते हैं।

गुरुरानी ने बताया दो अक्टूबर को रामपुर तिराहा और मुजफ्फरनगर के साथ हुए दमन पर नैनीताल में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई थी। लोग सड़कों पर उतर आए थे। नगर के मल्लीताल फव्वारे से तल्लीताल डांठ तक जुलूस निकाला गया था। इस दौरान गुरुरानी ने उन्हें संस्कृति के संरक्षण के लिए पूर्व मंत्री प्रताप भैया से मिला स्वर्ण पदक लौटा दिया था। तभी तल्लीताल में रैफ यानी रैपिड एक्शन फोर्स ने अचानक गोलीबारी शुरू कर दी। इस पर लोग बेतहाशा इधर-उधर भागने लगे। कई लोगों को चोटें आईं। भागते हुए गुरुरानी चिड़ियाघर रोड की ओर भागे और वहां मेघदूत होटल के कर्मी प्रताप बिष्ट की रैफ के अधिकारियों द्वारा की गई नृशंस हत्या के चश्मदीद गवाह रहे।

इसके बाद तत्काल ही प्रशांत होटल के स्वामी अतुल साह व अन्य लोग प्रताप को लेकर अस्पताल के लिए ले कर भागे, लेकिन रास्ते में ही प्रताप ने दम तोड़ दिया और वह शहीद हो गए।

हत्यारे अधिकारी को गवाही देकर नौकरी से बर्खास्त करवाया

गुरुरानी ने बताया कि वह इस घटना के चश्मदीद गवाह थे, इसलिए वह मामले की सीबीआई से हुई जांच के दायरे में आ गए। कई-कई बार उन्हें हत्यारे रैफ अधिकारी रामचरण को अलग-अलग कपड़ों, वेश-भूषा में, कभी आगे तो कभी पीछे खड़ा कर पहचान करने को लाया गया। उन पर काफी दबाव भी रहा। गुरुरानी का दावा है कि आखिर में सीबीआई कोर्ट हल्द्वानी में उनकी गवाही से ही रामचरण नौकरी से बर्खास्त भी हुआ, अलबत्ता इसके बाद क्या हुआ, यह किसी को पता नहीं है।

गुरुरानी ने कहा, उन्हें संतोष है कि बिना डरे हत्यारे अधिकारी को सजा दिला पाए, पर वह राज्य आंदोलन में हल्द्वानी जेल जाने के बावजूद राज्य आंदोलनकारी के रूप में भी चिन्हित नहीं हुए।