कोरोना संकट काल में चारधामा यात्रा पर श्रद्धालु के न पहुंचने के बाद भी हकहकूकधारी समाज की युवा पीढ़ी भगवान बदरीविशाल के प्रति अपने पूर्वजों की आस्था व समर्पण की भावना को साकार कर रहे हैं। धाम में डिमरी पंचायत, माल्या पंचायत, मेहत्ता, भंडारी, कमदी तथा स्योकार थोक के बारीदार के लोग ही भगवान की सेवा करते हैं। भगवान की पूजा पंरपराओं को अनादिकाल से यह हकहकूकधारी ही व्यवस्था संभाल रहे हैं। मंदिर की समस्त पूजन, अर्चना व भोग आदि में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बिना इन हकहकूकधारी समाज की मौदगी के पूजाओं का संपादित किया जाना कतई संभव नहीं है।
दरसअल, आदि जगदगुरू शंकराचार्य के काल से श्री बदरीनाथ की विशिष्ठ पूजा पंरपराएं संचालित होती आ रही है और भगवान की पूजा मे क्षेत्र के लोगों के हकहकूक भी निर्धारित किए गए थे, तब से ही हकहकूकधारी समाज के लोग अपने-अपने हकों की परंपरानुसार परंपराओं का निर्वहन कर रहे हैं। पूर्व काल में जब भगवान नारायण के दर्शनों के लिए वर्षभर में इक्का-दुक्का तीर्थयात्री ही पहुंच पाते थे, लेकिन तब भी श्री बदरीनाथ मंदिर से जुड़े हकहकूकधारी समाज के बारीदार यात्राकाल के छह महीनों का राशन अपने घरों से ले जाकर भगवान की सेवा में जुटे रहते थे। कोरोना संकट के चलते श्रद्धालु भगवान बदरीविशाल के दर्शन के लिए नहीं पहुंच पा रहे हैं। धाम के कपाट खुलने के बाद यहां एक राशन की दुकान खुलने की परिमीशन अवश्य मिली है, जिसके कारण हकहकूकधारी समाज को राशन अबमिल रहा है और अनादिकाल की तर्ज पर घर से लाने की जरूरत नहीं पड़ रही है। बदरीनाथ धाम में छाई वीरानगी ने आज की पीढ़ी को यह महसूस करा दिया कि उनके पूर्वजों ने कितनी विकट परिस्थितियों में भगवान की सेवा करते हुए उनके लिए मंदिर से जुड़ी परंपराओं को जीवन्त रखा है।
श्री बदरीनाथ मंदिर की पूजा परंपरा से जुड़े महत्वपूर्ण हकहकूक समाज में डिमरी समाज, माल्या पंचायत, मेहता, भंडारी कमदी व स्योकार समाज प्रमुख हैं। इन समाजों के बारीदार क्रमवार श्री बदरीनाथ धाम पहुंचकर भगवान नारायण की सेवा मे जुटे रहते हैं। डिमरी समुदाय से सहायक पुजारी ’भीतली बडवा’ जो मुख्य पुजारी रावल के साथ सहायक का कार्य करते हैं, इनके अलावा डिमरी समाज से लक्ष्मी मंदिर पुजारी व भोग मंडी आदि में अपने हकों व बारी के अनुसार पंरपराओं का निवर्हन करते हैं। इसी प्रकार माल्या पंचायत मे प्रखंड के टंगणी गांव के भट्ट व डंगवाल परिवार के लोग होते हैं, जिनका प्रमुख कार्य प्रतिदिन भगवान की पूजा के लिए तुलसी की पांच मालाओं को देना होता है। पांडुकेश्वर के मेहत्ता, भंडारी, कमदी थोक व जोशीमठ के स्योकार थोक के बारीदारों का प्रमुख कार्य भगवान के भोग आदि के लिए पहुंचने वाले खाद्यान्न, घी, तेल मसाला आदि का भंडारण करना व प्रतिदिन वितरण करने के साथ भगवान की विभिन्न आरतियों को तैयार करना, सभा मंडप की स्वच्छता बनाए रखना होता है। इन सबके अलावा सीमांत गांव माणा का भी अहम कार्य होता है, भगवान नारायण के कपाट बंद होने के अवसर पर भगवान के श्रीविगृह पर जिस घृत कंबल का लेपन किया जाता है, उस ऊन की कंबल को माणा गांव की कुंवारी कन्याओं द्वारा ही बुना जाता है।
कलयुग पापाहारी भगवान बदरीविशाल की पूजा परंपरा में कपाट खुलने से लेकर कपाट बंद होने तक इन हकहकूकधारी समाज की मौजूदगी बेहद आवश्यक है और इसी को ध्यान में रखते हुए नवगठित चारधाम देवस्थानम बोर्ड के एक्ट में मंदिर से सीधे जुड़े हकहकूकधारी समाज के हकों को सुरक्षित रखने की बात कही गई है।