उत्तराखंड में बाल-विवाह को रोकने के लिए हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से हर जिले में बाल विवाह निषेध अधिकारियों को नियुक्त करने और बाल विवाह अधिनियम 2006 के प्रावधानों को पत्र और भावना से लागू करने के लिए कहा है। हाईकोर्ट ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 का ठीक तरह से प्रचार-प्रसार किया जाए।

न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी ने 2016 में नैनीताल स्थित सामाजिक कार्यकर्ता चम्पा उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) का निपटारा करते हुए यह निर्देश जारी किए थे। यह आदेश 12 नवंबर को जारी किया गया था, लेकिन इसकी प्रतिलिपि बीते शनिवार को उपलब्ध हुई है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका के अनुसार, 2009 में, यूनिसेफ ने बताया कि, “भारत अकेले विश्व के बाल विवाह का 40 प्रतिशत योगदान देता है, और साथ ही 23 मिलियन भारतीय लड़कियाँ थीं जो बाल विवाह का शिकार हुईं।”

जनहित याचिका में कहा गया है कि, “वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2012-13 के अनुसार, 21 वर्ष से कम आयु के 5.5% लड़के और 18 वर्ष से कम आयु की 1.8% लड़कियों का विवाह उत्तराखंड में हुआ था। उत्तराखंड में शादी की औसत आयु पुरुषों के लिए 26 वर्ष और महिलाओं के लिए 22.3 वर्ष है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह का प्रचलन अभी भी काफी अधिक है।”

बाल विवाह से बच्चों और समुदाय दोनों के लिए बुरे परिणाम होते हैं, अदालत ने कहा कि: “यह लैंगिक असमानता और गरीबी का एक चक्र है। लिंग की परवाह किए बगैर बाल विवाह सभी पीड़ितों के लिए हानिकारक है।”

हाईकोर्ट ने कहा कि, “गर्भवती होने वाली युवा लड़कियों को परेशानियों का सामना अधिक करना पड़ता है। “वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2012-13 के अनुसार, उत्तराखंड में 39 प्रतिशत बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं की उम्र 15 से 19 वर्ष के बीच है।”

इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन विमेन के अनुसार, बाल विवाह की शिकार महिलाओं में घरेलू हिंसा से गुजरने की संभावना अधिक होती है। आदेश में कहा गया है कि, “अपर्याप्त समाजीकरण, शिक्षा को रोकना, बार-बार गर्भधारण के कारण होने वाले परेशानियां इन लड़कियों को दिमागी रुप से कमजोर कर देती हैं।”

हाईकोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2005-06 (NHFS-3) में 26 राज्यों में किए गए सर्वे के अनुसार, 20-24 वर्ष की 45% महिलाओं की शादी 18 साल से पहले कर दी गई थी। आदेश में कहा गया है कि, “शहरी क्षेत्रों (27.9%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिशत अधिक था (58.5%)।

यह बात साफ है कि बाल विवाह निरोधक अधिनियम 2006 के प्रावधानों को ठीक ढंग से लागू नहीं किया गया है, जिसका कारण है कि कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है और उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है।