हरीश रावत ने हिम विशेषज्ञों की चेतावनी को किया अनदेखा, मांगें माफीः सतपाल महाराज

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सतपाल महाराज
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केदारनाथ धाम पर चौराबाड़ी ग्लेशियर बम की तरह फटकर कभी भी कहर बरपा सकता है। जब उक्त भविष्यवाणी 2004 में चौराबाड़ी ग्लेशियर का सर्वेक्षण पूरा कर लौटे देश के प्रसिद्ध हिम विशेषज्ञों ने की थी तो उस समय तत्कालीन जल संसाधन मंत्री रहते हरीश रावत ने इसका समय रहते संज्ञान क्यों नहीं लिया।
प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कांग्रेस नेता एवं तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत से पूछा है कि जब चौराबाड़ी ग्लेशियर के आसपास बर्फीली झीलों की संख्या में वृद्धि हो रही थी और हिम विशेषज्ञों द्वारा लगातार उस समय किसी बड़ी त्रासदी की चेतावनी दी जा रही थी तो उस समय केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहते हरीश रावत ने इन चेतावनियों को अनदेखा क्यों किया? महाराज ने कहा कि 2012-2014 में जल संसाधन मंत्री रहते हरीश रावत को चौराबाड़ी के साथ-साथ ऐसे तमाम ग्लेशियरों, जिनके विषय में हिम विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् बार-बार चेतावनी दे रहे थे, उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसे मामले में उन्होने निष्क्रियता क्यों बरती?
महाराज ने कहा कि यदि वह इस विषय पर काम करते तो 2013 की त्रासदी के खतरनाक प्रभाव को रोका जा सकता था। क्या हरीश रावत को देश से अपनी इस बड़ी गलती की माफी नहीं मांगनी चाहिए?
सतपाल महाराज ने कहा कि डब्ल्यूआईएचडी के वरिष्ठ ग्लेशियोलॉजिस्ट द्वारिका प्रसाद डोभाल ने उस समय बताया था कि पिछले 100 वर्षों में अफगानिस्तान से म्यांमार तक हिंदुकुश हिमालय में कई स्थानों पर कम से कम 50 ग्लेशियर झील का प्रकोप देखा गया है। अगस्त 1929 में सबसे पहले दर्ज की गई घटनाओं में एक शामिल जब काराकोरम पहाड़ों में चोंग कुमदन ग्लेशियर के आधार पर एक झील ने सिंधु घाटी में बाढ़ के लिए 15 बिलियन क्यूबिक पानी छोड़ने के लिए अपने मार्जिन को तोड़ दिया था। इसलिए अब क्या हरीश रावत बतायेंगे कि ऐसे तमाम उदाहरण और पर्यावरणविदों की चेतावनियों के बावजूद उस समय बतौर मंत्री रहते उन्होंने क्या एक्शन लिया। अपनी इस निष्क्रियता के लिए भी क्या वह उत्तराखंड की जनता से माफी मांगेंगे?