ताबड़तोड़ आंदोलन कर उत्तराखण्ड देश में पहले पायदान पर

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देहरादून। एक तरफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड को हड़ताली प्रदेश की छवि से मुक्ति दिलाने की कसरत में लगे हैं। वहीं कर्मचारियों ने ताबड़तोड़ आंदोलन कर राज्य को देश में पहले पायदान पर ला खड़ा कर दिया है। यूं तो कुल आंदोलनों में भी उत्तराखंड टॉप पर है, मगर सेक्टवार आंदोलन की बात करें तो यहां के कर्मचारियों ने राजनीतिक व छात्र आंदोलनों को भी पछाड़ दिया। आंदोलनों के रूप से प्रदर्शित हो रही असंतुष्टि की यह तस्वीर हाल ही में जारी ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट में सामने आई। यह रिपोर्ट वर्ष 2016 के आंदोलनों के आधार पर तैयार की गई है।

वर्ष 2016 में उत्तराखंड में 21 हजार 966 आंदोलन किए गए। इसमें अन्य तरह के आंदोलन की संख्या सबसे अधिक 8778 है, लेकिन सेक्टवार आंदोलन की बात करें तो कर्मचारी वर्ग सबसे आगे नजर आता है। यहां तक कि श्रम, राजनीतिक व छात्र आंदोलन भी कर्मचारियों के आंदोलन से कोसों पीछे नजर आते हैं। आंदोलन की यह अत्ति कहीं विकास कार्यों की रफ्तार पर ब्रेक लगाती है, तो कहीं शिक्षण व्यवस्था को प्रभावित करती है। कर्मचारी कल्याण की दिशा में निरंतर प्रयास होने के बाद भी यह स्थिति गंभीर सवाल खड़े करती है और सोचने पर भी विवश करती है कि क्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्यों से अधिक आंदोलन उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में हो रहे हैं। सवाल यह भी कि ताबड़तोड़ आंदोलनों से प्रदेश के विकास पर क्या असर पड़ता है या छात्र-छात्राओं को इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ती होगी। हालांकि एक अच्छी बात यह भी कि सामुदायिक वैमनस्य को लेकर वर्ष 2016 में उत्तराखंड में एक भी आंदोलन रिकॉर्ड नहीं किया गया। जबकि पूरे देश में इस तरह के 6587 आंदोलन किए गए हैं और इस मामले में दिल्ली, महाराष्ट्र व कर्नाटक टॉप में रहे।

आंदोलन में अग्रणी प्रदेश (विभिन्न सेक्टर में आंदोलन)
राज्य, कर्मचारी, राजनीति, श्रम, छात्र
उत्तराखंड, 5838, 2744, 3212, 1384
पंजाब, 5751, 2409, 1786, 508
तमिलनाडू, 3225, 5996, 1248, 624
मध्य प्रदेश, 2532, 2990, 292, 871
तेलंगाना, 1240, 22, 3363, 1440
चंडीगढ़, 990, 515, निल, निल
दिल्ली, 965, 2186, 361, 1100
राजस्थान, 678, 410, 510, 1316
उड़ीसा, 459, 1768, 674, 395
गुजरात, 290, 3372, 124, 64