देव भूमि उत्तराखंड में देश का पहला हिम तुेंदुआ (स्नो लैपर्ड) संरक्षण केंद्र बनने जा रहा है। वन विभाग ने इसका प्रारूप तैयार कर लिया है। राज्य में 80 से ज्यादा हिम तुेंदुओं के होने का दावा किया गया है। यह केंद्र उत्तरकाशी जिले की भैरों घाटी में गंगोत्री के लंका में बनेगा।उत्तरकाशी प्रभाग वन अधिकारी (बना) संदीप कुमार कहना है कि इसकी अनुमानित लागत 2.5 करोड़ रुपये है। यह केंद्र गंगोत्री नेशनल पार्क का हिस्सा होगा।
– उत्तरकाशी जिले की भैरों घाटी में बनेगा देश का पहला हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र
– राज्य में 80 से ज्यादा हिम तेंदुओं की मौजूदगी, वन विभाग ने तैयार किया प्रारूप
उन्होंने बताया कि डीपीआर की स्वीकृति मिलते ही काम शुरू हो जाएगा। वन विभाग के पास लंका में अपनी भूमि है। उन्होंने कहा कि लंका नीलांग घाटी एवं गंगोत्री धाम का द्वार है। हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र देश- विदेश के तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होगा। यहां हिमालय के दुर्लभतम वन्य प्राणियों की कलाकृतियां भी होंगी। उन्होंने बताया कि गंगोत्री नेशनल पार्क 1553 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह भागीरथी नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में है। पार्क का पूर्वोत्तर हिस्सा तिब्बत के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगा हुआ है। यह क्षेत्र समुद्र की सतह से 7083 मीटर की ऊंचाई पर है। बर्फ से ढके पहाड़ और हिमनद इस पार्क में फैले हुए हैं। गंगा नदी का उद्गम स्थान गोमुख इसी पार्क के अंदर है। गंगोत्री हिम तेंदुओं का विचरण आम बात है।
वन्य प्राणी विशेषज्ञ और शिक्षक डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल का कहना है कि हिम तेंदुआ और सामान्य तेंदुआ में कोई सम्बन्ध नहीं है। घोस्ट ऑफ माउंटेन कहे जाने वाले हिम तेंदुओं का संरक्षण बहुत जरूरी है। वह कहते हैं कि उत्तराखंड में तकरीबन 86 हिम तेंदुओं की मौजूदगी का अनुमान है। गंगोत्री नेशनल पार्क के कैमरों में हिम तेंदुए कैद हैं। स्नो लैपर्ड आमतौर पर रात को विचरण करते हैं। इन्हें एकांत पसंद है। लगभग 90-100 दिन के गर्भाधान के बाद मादा 2-3 शावकों को जन्म देती है। यह एक तरह से बड़ी आकार की बिल्लियां हैं और लोग इनका शिकार इनके फर के लिए करते हैं। हिम तेंदुआ भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ द्वारा “लुप्तप्राय” सूची में है। हिम तेंदुए बर्फीले इलाकों में समुद्र तल से 3,350 से 6,700 मीटर की ऊंचाई पर मिलते हैं।