एक बार फिर याद आये उत्तराखंड के गाँधी इंद्रमणि बडोनी

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(ऋषिकेश) उत्तराखंड राज्य का निर्माण एक बड़े जन आन्दोलन के रूप में हुआ है जिस में उत्तराखंड के हर वर्ग में अपनी महत्व पूर्ण भूमिका निभाई। उत्तराखंड के गाँधी के नाम से मशहूर इन्द्रमणि बडूनी ने इस पूरे जनांदोलन को एक दिशा दी और राज्य आंदोलन की कर्मभूमि बना ऋषिकेश जंहा से ये आंदोलन सांस्कृतिक रूप में निकल कर उत्तराखंड के गांव गांव से दिल्ली दरबार तक पहुंचा ।

आज उत्तराखंड अपने प्रणेता इंद्र मणी बडूनी की पुण्यतिथि मना रहा है जो सपना इंद्र मणि बडोनी ने देखा था चंद सालो में उत्तराखंड अपने मूल उद्येश्य से भटक गया है। जो सपने राज्य निर्माण के समय पर थे ,जो आज भी अधूरे है पहाड़ आज भी बेरोजगारी -पलायन का शिकार है विकास की राह देख रहे है। आज पुरे प्रदेश में इंद्र मणि बडूनी की पुण्यतिथि को संस्कृति उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। ऋषिकेश बडोनी की कर्मस्थली रहा है यही से राज्य आंदोलन की चिंगारी उठी थी शहीद स्मारक पर बड़ी संख्या में राज्य आन्दोलनकारी अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे है।

इन्द्रमणि बडोनी का जन्म 24 दिसम्बर 1925 को तत्कालीन टिहरी रियासत के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. सुरेशानन्द बडोनी था। बडोनी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई और अपनी माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए नैनीताल और देहरादून चले गये। शिक्षा प्राप्ति के बाद अल्पायु 19 वर्ष में ही उनका विवाह सुरजी देवी से हो गया। बडोनी, डी.ए.वी. कॉलेज देहरादून से स्नातक की डिग्री लेने के बाद आजीविका की तलाश में बम्बई चले गये। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने की वजह से उन्हें वापस गाँव लौटना पड़ा। तब उन्होंने अखोड़ी गाँव और जखोली ब्लाक को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया।

देवभूमि भ्रमण के दौरान उन्होंने ही भिलंगना नदी के उद्गम स्थल खतलिंग ग्लेशियर को खोजा था। उनका सपना पहाड को आत्मनिर्भर राज्य बनाने का था और उन्ही के प्रयासों से गंगी में दुर्लभ औषधियुक्त जडी बूटियों की बागवानी प्रारम्भ हुई।
उनका सादा जीवन देवभूमि के संस्कारों का ही जीता-जागता नमूना था। वे चाहते थे कि पहाडों को यहां की भौगोलिक परिस्थिति व विशिष्ट सांस्कृतिक जीवन शैली के अनुरुप विकसित किया जाए। अपनी संस्कृति के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था। वर्ष 1957 में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर उन्होंने केदार नृत्य का ऐसा समा बॉधा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उनके साथ थिरक उठे।

अमरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने स्व. इन्द्रमणि बडोनी को ”पहाड के गॉधी“ की उपाधि दी थी। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा था कि उत्तराखण्ड आंदोलन के सूत्रधार इन्द्रमणि बडोनी की आंदोलन में; उनकरी भूमिका वैसी ही थी जैसी आजादी के संघर्ष के दौरान भारत छोडों आंदोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गॉधी ने निभायी थी। अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष में उतरने के साथ ही उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। लेकिन आजादी के बाद कामरेड पीसी जोशी के सम्फ में आने के बाद वह पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हुए। अपने सिद्वांतों पर दृढ रहने वाले इन्द्रमणि बडोनी का जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले दलों से मोहभंग हो गया। इसलिए वह चुनाव भी; निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में लडे। उनकी मुख्य चिंता इसी बात पर रहती थी कि पहाडों का विकास कैसे हो।

राज्य आंदोलन में लगातार सक्रिय रहने से उनका स्वास्थ्य गिरता गया। 18 अगस्त 1999 को उत्तराखण्ड के सपूत श्री इन्द्रमणि बडोनी जी का निधन हो गया।