(देहरादून) कोरोना महामारी से लड़ाई के इस दौर में यह ज़रूरी नहीं है कि सभी नायक सफ़ेद कोट खाकी वर्दी में दिखे। मेरे ऐसे कई सहयोगी हैं जो माइक, कैमरा, स्मार्ट फ़ोन लेकर सड़कों पर तैनात हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि इन सिपाहियों के कारण ही हम लोगों तक घरों में बैठे राज्य के तमाम इलाक़ों से हाल चाल पहुँच रहे हैं। आम लोगों तक सरकार की बात और सरकार तक आम लोगों की परेशानियाँ पहुँचाने के लिये पत्रकार चौबीस घंटे काम कर रहे हैं।
मिसाल के तौर पर, एएनआई उत्तराखंड के किशोर अरोड़ा और अफजाल अहमद। यह जोड़ी राज्य के उन सैंकड़ों टीवी पत्रकारों के मौजूदा हालात बया करती है जो इस महामारी के बावजूद यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि आम लोग तक सभी ख़बरें और जानकारियाँ पहुंचती रहे।
पिछले 15 सालो से अपने संस्थान के लिये इस जोड़ी ने उत्तराखंड की तमाम छोटी बड़ी ख़बरों को अपने कैमरे में कैद किया है। लेकिन 41 साल के अफजाल और 54 साल के किशोर के लिये कोरोना लॉकडाउन एक ऐसा अनुभाव रहा है जिसे वो आसानी से नहीं भूल सकेंगे।
अफजाल कहते हैं कि, “2013 में आई केदारनाथ आपदा को मैंने कवर किया था, लेकिन इस कोविद 19 महामारी के सामने वो कम ही लगता है। इस महामारी से किसी न किसी तरह से प्रभावित सीनियर सिटिज़न, मज़दूरों, छात्रों आदि से हमें मिलने का मौका मिला है। यह महामारी किसी से भेदभाव नहीं करती है और इसने समाज के हर वर्ग के लोग को ख़तरे में डाला है।”
किशोर देहरादून के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि, “इतने सालो में मैंने कभी देहरादून को इतना शांत और सुनसान नहीं देखा है। कुछ हफ़्ते पहले तक ही यह शहर शोर गुल से भरा हुआ था।और अब केवल सुनसान सड़के और वीरान बाज़ार दिखाई देते हैं।”
शहर के सभी 13 ज़िलों में मौजूद पत्रकारों की ही तरह इन दोनों के दिन की शुरुआत भी सुबह जल्दी और रात को देर से घर पहुँच कर होती है। अपने अपने शहरों में कोने-कोने तक पहुँच कर यह ख़बरें और लोगों की कहानियाँ तलाश कर लाते हैं। देहरादून के पत्रकार दोपहर के समय घंटाघर में जमा होते हैं और थोड़ा आराम करते हैं।
ऐसा लगता है कि अभी इन लोगों को आराम से अपने घर जाकर घरवालों के साथ समय बिताने में थोड़ा समय ज़्यादा लगेगा। लेकिन, एक पत्रकार के लिये इसके बाद किसी और छुपी कहानी को लोगों के सामने लाने की चुनौती खड़ी रहेगी।