उत्तराखंड को देश दुनिया में अपने विविध हस्तशिल्प के लिए जाना जाता है। लेकिन पलायन और सरकारी उदासीनता के कारण ये अपनी पहचान धीरे-धीरे खो रहा है। अब राज्य के ही कुछ लोगों के सामूहिक प्रयासों के कारण मानो हश्तशिल्प कला में एक बार फिर पंख लग गए हैं। आज हम देहरादून में एक आईटी कंपनी में काम करने वाले डिजाइनर उपेंद्र रावत के बारे में बात करते हैं, जिन्होने अपने प्रयासों से राज्य की मशहूर बांस की टोकरियों के लिए एक नई पहल की है, और हनी हस्तशिल्प के साथ बांस के उत्पादों को एक नया जीवन दिया है।
अपनी पत्नी उदेश रावत के हस्तशिल्प कौशल से प्रेरित, उपेंद्र ने बांस बुनकरों की खोज शुरू की। ये बुनकर उन्हे उनके बचपन में पहाड़ों पर बिताए गए समय को याद भी दिलाते हैं। लगभग चार महीने की खोज के बाद, देहरादून के बाहरी इलाके सहसपुर लांगा क्षेत्र में उपेंद्र की खोज पूरी हुई। यहां वह सात से आठ बुनकरों के परिवारों के संपर्क में आए जिन्होंने रिंगल (बांस) की टोकरी की लगभग खत्म हो चुकी कला को अपने दमपर जीवित रखा है।
उपेंद्र ने न्यूजपोस्ट से हुई बातचीत में बताया कि , “मैं पहाड़ियों से संबंध रखता हूं और एक ऐसे गांव में बड़ा हुआ हूं जहां दो से तीन परिवार बुनाई की कला के लिए समर्पित थे, लेकिन जब उन्हें कोई वित्तीय सहायता नहीं मिली, तो यह कला जल्द ही लकड़ी के बक्सों में बंद कर दी गई थी।”
आज गोपाल और उनके परिवार ने उपेंद्र के निरंतर प्रोत्साहन के कारण इस कला को एक बार फिर से शुरू कर दिया है। गोपाल द्वारा बनाए गए पहले नमूने कुछ महीने पहले ही उपेंद्र को भेजे गए थे। उन्होंने बुनाई करने वाले परिवारों के उत्पादों को लोगों तक पहुंचाने के लिये फेसबुक पर प्रमोट करने का फैसला किया।
“कस्टमाइज्ड टोकरियों को दो से तीन दिनों के अंदर पूरा किया जाता है। यह परिवार ना केवल आज इसपर काम कर रहा बल्कि अगली पीढ़ी को भी अपनी प्रतिभा को सिखाने की प्रक्रिया में लगा हुआ है, जो मेरे लिए एक व्यक्तिगत इनाम है,” उपेंद्र कहते हैं।
उपेंद्र का मानना है कि राज्य में बहुत सारे कारीगर हैं, लेकिन उनके कौशल को प्रदर्शित करने के लिए उनके पास उचित मंच नहीं है। ये हाथ से बुने हुए बांस टोकरी पर्यावरण के अनुकूल, टिकाऊ और ऑर्गेनिक हैं। इन्हें बहुत सारे कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और इन्हें सभी स्तरों पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
त्यौहार के मौसम को ध्यान में रखते हुए, उपेंद्र ने अब सभी टोकरी पर 70% की छूट दी है, उम्मीद है कि यह देवी लक्ष्मी को उन लोगों के घरों में लाएगा जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत है।