(देहरादून) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा तैयार एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सॉलिड वेस्ट मैनेजनेंट (एसडब्ल्यूएम) के मामले में उत्तराखंड देश के सबसे खराब राज्यों में से एक है क्योंकि राज्य के पास एक भी सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट या सैनिटरी लैंडफिल नहीं है। कुछ महीने पहले जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य की राजधानी देहरादून सहित राज्य के अधिकांश शहरों में निवासियों ने कहा है कि: हिमालयी राज्य में वेस्ट मैनेजमेंट और निपटान की स्थिति सही नहीं हैं।
रिपोर्ट के आकड़ों को अगर और करीब से देखें तो जम्मू-कश्मीर जैसे हिमालयी राज्यों के साथ ही हिमाचल प्रदेश भी सीवेज ट्रीटमेंट के साथ-साथ लैंडफिल की संख्या के मामले में उत्तराखंड की तुलना में ये राज्य काफी बेहतर है। इस वर्ष जनवरी में संसद में केंद्र सरकार दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड की शहरी आबादी 92 शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में प्रतिदिन लगभग 1400 मैट्रिक टन सॉलिड वेस्ट पैदा करती है। हालांकि, इसमें से अधिकांश का कोई ट्रीटमेंट नहीं किया जाता है। शहरी विकास सचिव आरके सुधांशु ने इस रिकॉर्ड की पुष्टि करते हुए कहा कि कुल कचरे में से केवल 20 प्रतिशत का ही ट्रीटमेंट किया जाता है।
अदालतों द्वारा दो हालिया आदेश (सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड पर 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है, जहां ठोस कचरा प्रबंधन नीति नहीं है और नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून नगर निगम को समय-समय पर कचरे को शहर से साफ करने के लिए आदेश दिए हैं) के बाद भी उत्तराखंड में कचरा निपटान और प्रबंधन के मामले में राज्य की स्थिति निराशाजनक है और राज्य की सफाई व्यवस्था पर सवाल उठाती है।
पिछले साल नवंबर में राज्य शहरी विकास विभाग द्वारा तैयार किए गए एसडब्ल्यूएम के लिए कार्य योजना का कहना है कि अगले तीन दशकों में राज्य में शहरी सॉलिड वेस्ट हर रोज 2300 मैट्रिक टन से अधिक होगा और आने वाले 2025 तक सॉलिड वेस्ट डिस्पोजल का पूरी तरह से होना जरुरी है । इसे प्राप्त करने के लिए, राज्य में 58 परियोजनाओं को तीन चरणों में लागू करने का प्रस्ताव करती है, जिनमें से सभी 2021 तक पूरा हो जाएंगे। हालांकि इन परियोजनाओं के लिए उपयुक्त भूमि की कमी एक बाधा है।
दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के रैप के बाद तैयार राज्य की नई एसएमडब्लू नीति भी इस कार्य योजना पर आधारित है लेकिन इसमें निर्धारित लक्ष्य वास्तविकता से बहुत दूर हैं। यहां तक कि कार्य योजना का पहले चरण जिसके अंतर्गत 21 परियोजनाएं 21 यूएलबी के लिए पूरी की जानी थीं वो अभी भी पूरी नही हैं।
राज्य के खराब प्रदर्शन को इस तथ्य के साथ भी जोड़ा जा रहा है कि कई यूएलबी के पास संसाधन की कमी है। यहां तक कि देहरादून नगर निगम मिनी ट्रक की कमी से गुजर रहा है, साठ वार्डों के लिए अभी केवल 45 ट्रक है।
हालांकि शहरी विकास विभाग के अधिकारी कहते हैं कि राज्य वेस्ट मैनेजमेंट के मामले में अच्छा प्रदर्शन करना शुरू कर रहा है और अन्य राज्यों के बराबरी में आने की कोशिश कर रहा है। सुधांशु ने कहा कि “हमारे पास पहले से ही एक कार्य योजना थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे नीति के रूप में नहीं माना, इसलिए हम आदेश के तीन दिनों के भीतर राज्य में एसडब्ल्यूएम नीति के मसौदे के साथ आए।” राज्य के नौ सो वार्डों में से हम 70 प्रतिशत कूड़ा डोर-टू-डोर सर्विस के माध्यम से इकट्ठा कर रहें। “नवंबर तक, 92 यूएलबी में से केवल 10 ने इन परियोजनाओं के लिए भूमि की पहचान की थी। हालांकि, पिछले कुछ महीनों में, यह संख्या बढ़कर 40 हो गई है।यह संख्या पहाड़ी इलाके के कारण चुनौतियों के बावजूद है।“
जहां एक तरफ सरकार और अधिकारियों का यह मानना है कि उनकी तरफ से वेस्ट मैनेजमेंट के लिए कोशिशेें की जा रहीं वहीं वेस्ट वॉरियर संस्था जो साल 2011 से वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में में काम कर रही हैं उनका इस विषय पर कुछ और ही कहना है।वेस्ट वॉरियर के सीओओ अविनाश सिंह कहते हैं कि “यह रिपोर्ट बिल्कुल आश्चर्यजनक नहीं है। उत्तराखंड एक युवा राज्य होने की वजह से इसमें संभावना बहुत अधिक है, लेकिन इसके लिए सरकार को जागने और अधिक सक्रिय होने की जरूरत है।हमारे राज्य उत्तराखंड में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। हालांकि राज्य में प्लास्टिक पर बैन लगा दिया गया है, फिर भी राज्य की राजधानी होने के नाते देहरादून में अभी भी प्लास्टिक यूज हो रहा हैं। समाधान को समस्या से कही ज्यादा सक्रिय होना चाहिए और इन्हें इन नियमों को कड़ाई के साथ लागू करना चाहिए। “