हर्षिल घाटी में बंपर सेब की पैदावार, समर्थन मूल्य से नाराज काश्तकार

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सेब
हर्षिल घाटी अपनी खूबसूरती के साथ ही सेब, राजमा के उत्पादन के मामले में दुनियाभर मैं अपनी विशेष पहचान रखती है। सेब की अच्छी पैदावार होने से अबकी सेब उत्पादकों की खुशी समर्थन मूल्य में मनमाफिक बढ़ोतरी नहीं किए जाने से नाराजगी में बदल गई है।
जिला उद्यान अधिकारी प्रभाकर सिंह ने बताया कि इस साल हर्षिल घाटी में 4000 मीट्रिक टन सेब उत्पादन की उम्मीद है। हालांकि, इस साल कम बारिश और पतझड़ के कारण कई काश्तकारों को नुकसान का डर सता रहा था। इस बार सरकार ने सी के ग्रेड के सेबों का एक रुपये बढ़ा कर 9 रुपये प्रति किलो का समर्थन मूल्य रखा है। उन्होंने बताया कि अब तक लगभग 21000 मीट्रिक टन सेब मंडियों तट पहुंच चुका है जबकि 5 हजार मीट्रिक टन सेब अभी निकलना शेष है। यहां के जय भगवान का कहना है कि सरकार से काश्तकारों के सेब का समर्थन मूल्य पूर्ववर्ती सरकार की भांति 30 रुपये प्रति किलो करने की मांग की गई है।
समर्थन मूल्य से नाराज काश्तकार
उत्तरकाशी जनपद की बात करें तो यहां पर करीब 30 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है, जिसमें से हर्षिल घाटी में करीब 4 हजार से 5 हजार मीट्रिक टन सेब की पैदावार होती है। हर्षिल घाटी के सेब का अपने बड़े साइज और मिठास के लिए देश की मंडियों में अपना एक अलग स्थान है। इस साल अच्छी बर्फबारी के साथ ही घाटी के सेब काश्तकारों को उत्पादन की अच्छी उम्मीद थी, जो कि अब सेब उत्पादन को देखते हुए सार्थक नजर आ रहा है। कोरोनकाल के बीच अभी सीमित मात्रा में सेब खरीददार हर्षिल घाटी पहुंचने लगे हैं।काश्तकारों को उम्मीद है कि इस कोरोना काल में अगर शासन और प्रशासन मदद करता है तो अच्छी संख्या में सेब खरीददार मंडियों से हर्षिल घाटी पहुंचेंगे।
हर्षिल घाटी के काश्तकारों का कहना है कि कम बारिश, पतझड़ और अच्छी दवाइयां न मिलने के कारण कई काश्तकारों को सेब के ग्रेड घटने का डर सता रहा है। क्योंकि, ए और बी ग्रेड के सेब तो खरीददार ले रहे हैं, लेकिन बीमारी के कारण सी ग्रेड के सेबों को खरीददार नहीं मिल रहे हैं। हालांकि, प्रदेश सरकार ने सी ग्रेड के सेब के लिए 9 रुपये प्रति किलो समर्थन मूल्य निर्धारित किया है। जिसे 30 रुपये प्रति किलो तक किया जाए. क्योंकि, साल 2012-13 की आपदा में भी पूर्ववर्ती सरकार ने यही मूल्य काश्तकारों को दिया था, ताकि इस कोरोनाकाल की आपदा में छोटे सेब काश्तकारों को लाभ मिल सके। यहां हर वर्ष 30 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है और यहां रॉयल डिलिस्स, रेड डिलिस्स सहित आठ किस्में हैं। अगस्त से लेकर 30 अक्टूबर तक सेब की तुड़ाई का कार्य चलता है। बगोरी, हर्षिल, मुखवा, धराली, सुक्की टॉप, यमुनाघाटी के सेवरी, आराकोट बंगाण मे सेब की बंपर पैदावार होती है।
क्या कहते हैं  कृषि उद्यान मंत्री
कृषि एवं उद्यान मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि उत्तराखंड के सेब की ब्रांडिंग को लेकर सरकार ने भरपूर प्रयास किया है। उत्तराखंड एप्पल के नाम से पेटियां तैयार करने का जिम्मा मंडी समितियों को दिया गया है। गुणवत्ता पर विशेष फोकस करने के निर्देश दिए गए हैं। पैकिंग से पहले बागवानों को पेटियां उपलब्ध हो रही हैं। काश्तकारों को समर्थन मूल्य देने के लिए भी सरकार प्रतिबद्ध है।