उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में आषाढ़ के महीने में धान की रोपाई जोरों पर रहती है। सुबह से शाम तक खेतों में मस्ती के साथ रोपाई जहां रोमांचित करती है, वहीं दोपहर में सामूहिक भोजन माहौल को और भी खुशगवार बना देता है। इस पर शाम को आखिरी खेत मे एक दूसरे पर कीचड़ व पानी डाल कर दिन भर की थकावट को भूल जाना महीने भर तक लगा रहता है। ऐसा ही कुछ उत्तरकाशी जिले के रवांई घाटी रामा सेराई में देखने को मिलता है, जो क्षेत्र में लाल चावल लिए मशहूर है।
गांव के ग्रामीणाें द्वारा सामूहिक रोपाई की प्रथा यहां बहुत पुरानी है। सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुसार ढोल बजाओ के साथ पुरुष कंधे पर हल लेकर बैलों के साथ खेत में पहुंचते हैं तो महिलाएं पीठ पर पौधों की कंडी उठाये तैयार खेत तक पहुंच कर परम्परागत वाद्य यंत्र ढोल-दमाऊ की धुन पर पौध रोपाई करते हैं। हर दिन एक परिवार की रोपाई पूरे ग्रामीण मिल जुल कर पूरा करते हैं। शाम को पुनः पूरा गांव एक साथ एक आंगन में रात्रि भोज का आनंद लेते हैं और अगले दिन किस परिवार की रोपाई होगी, इस पर फैसला लिया जाता है।
यहां के रामा सेराई के मठ, मुल्टाणई, पोरा, मेहर गांव कंडियाल गांव गुंदियाटगांव, रौन, रामा गांव, सुनाडी गांव, पुरोला गांव, खलाडी में आज भी सदियों से चली आ रही परम्परा को निभाया जा रहा है। मिल जुल कर पड्याव प्रथा को जीवित रखने वाले ग्रामीण रोपाई के समय जीतू बगड़वाल के जागर गाए हैं। हालांकि समय के साथ पहाड़ी प्रेम गीतों ने भी इसमें जगह बना ली है किंतु पुराने लोकगीत आज भी बखूबी गए जाते हैं। मान्यता है कि कितने गते अषाढ़ को किस जाति के लोग रोपाई नहीं करते हैं । ग्रामीण इस परंपरा का निर्वाह सदियों से कर आ रहे हैं।
जीआई टैग लाल चावल को देश विदेश में पहचान की दरकार
रवांई के पुरोला और मोरी क्षेत्र के मशहूर लाल धान को अब नई पहचान देने की तैयारी है। कृषि विभाग इसे जीआई (जियोग्राफिक्ल इंडिकेशन) टैग दिलाने का प्रयास कर रहा है। विभाग ने इसके लिए कृषि सचिव को पत्र भेजा था । यदि क्षेत्र के लाल धान को जीआई टैग मिल जाता है तो यह उत्पाद एक ब्रांड बन जाएगा। रवांई क्षेत्र मैं लगभग 2700 हेक्टेयर क्षेत्र में लाल धान की खेती होती है।
मुख्य कृषि अधिकारी ने बताया कि लाल धान को जीआई टैग के लिए कृषि सचिव को पत्र भेजा गया है। लाल चावल मैं आयरन, प्रोटीन, एंटी ऑक्सीडेंट की प्रचुरता होती है। प्रचुर मात्रा में चरदान की खेती करने वाले नीलकंठ नौटियाल ने बताया कि यह अनाज सदियों से हमारे क्षेत्र में उगाया जा रहा है। जैविक तरीके से उगाए जाने वाले इस धान में आयरन, प्रोटीन, पोटैशियम, फाइबर और एंटी ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होता है। यह दिल, हड्डी, मोटापे और अस्थमा आदि बीमारियों से बचाता है। यही वजह है कि हिमाचल प्रदेश के खरीददार लाल चावल को 60-70 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदते हैं।