कालागढ़, शीत ऋतु के आखिरी दिनों में जिले के कालागढ़ में गिद्धों के नजर आने से वन विभाग खुश है। पिछले साल यहां झुंड में करीब 25-30 गिद्ध दिखे थे। इस बार कालागढ़ केंद्रीय कालोनी के सूखा स्रोत में लगभग 40 गिद्ध झुंड में नजर आए हैं।
गिद्धों को प्रकृति का सफाईकर्मी कहा जाता है। दूषित पर्यावरण और मवेशियों में इस्तेमाल डाइक्लोफोनिक दवा के चलते गिद्ध तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। वन्यजीव प्रेमी और वन्यजीव संरक्षण संस्थाएं इसको लेकर चिंतित हैं। इन्हें व्हाइट रम्पड भी कहा जाता है। यह दिनभर बादलों में तैरने के बाद शाम को सूखा स्रोत में बैठ जाते हैं। कालागढ़ वन विभाग में खुश है।
व्हाइट रम्पड वल्चर भारतीय गिद्धों की सबसे बड़ी प्रजाति है। इनके साथ ही इजिप्शन वल्चर का भी एक जोड़ा सूखा स्रोत में दिखाई दिया है। गिद्ध मुर्दाखोर होते हैं। वह मृत जीव को खाकर अपना पेट भरते हैं। इनमें किसानों के मवेशी भी शामिल हैं। ज्यादा दुग्ध उत्पादन और मवेशियों में बीमारी न फैले इस कारण किसानों ने अपने मवेशियों को डाइक्लोफोनिक इंजेक्शन देना शुरू किया है। इसका नतीजा यह हुआ कि यह इंजेक्शन गिद्धों के लिए काल बनकर आया। डाइक्लोफोनिक इंजेक्शन लगे किसी भी मृत मवेशी को खाने पर गिद्धों की किडनी फेल होने पर उनकी मौत हो जाती है। इस वजह से वन्यजीव संस्थाएं इस इंजेक्शन पर रोक लगाने की मांग करते रहते हैं।
कालागढ़ वन विभाग के वार्डन आरके तिवारी ने बताया कि यह बेहद सुखद अनुभव है। कॉर्बेट में चल रही महाशीर कॉन्सरवेंसी जैसी संस्थाओं का भी इसमे बड़ा योगदान है । कालागढ़ में भी इनके संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे ।