उत्तरकाशी : सेब की लाली पर लगा मौसम का ग्रहण

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    सेब

    सेब की लाली पर इस बार मौसम का ग्रहण लग गया है। इससे एक ओर बागवान मायूस हैं तो बीज में भी सेब की कीमत कम नहीं हो रही है। अतिवृष्टि एवं ओलावृष्टि के कारण इस बार फलों की सेटिंग प्रभावित हुई है, जिससे बागवानों को भारी नुकसान हुआ है।

    जिला उद्यान अधिकारी डॉक्टर डी.के. तिवारी ने बताया है कि कि जिले में 30000 मेट्रिक टन का उत्पादन होता है। इसमें 1700 से लेकर 1800 मेट्रिक टन यमुना घाटी की सेवरी और मोरी के नैटवाड- बंगाल क्षेत्र में होता है जबकि गंगा घाटी में महज 1200-1300 मेट्रिक टन का उत्पादन होता है इसमें हर्षिल, धारली, मुखवा, झाला आदि क्षेत्रों में सब का उत्पादन होता है।

    गौरतलब है कि मोरी क्षेत्र के बंगाण क्षेत्र में बीते रोज अतिवृष्टि व बादल फटने से ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य साधन सेब की फसल बुरे तरह से तबाह किया है। बागवानों की सेब की फसल तैयार थी तभी अतिवृष्टि से सेब बगीचों में भूधंसाव से सेब के पेड़ों सहित सेब की फसल को बहुत नुकसान हो गया। ऐसे में बागवानों ने सरकार से मुआवजे की मांग की है।

    सेब उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियों और अपार संभावनाओं के बावजूद जिले के सेब काश्तकार विभाग की लापरवाही के शिकार हैं। यही कारण है कि जिले में सेब बागानों का रकबा तो बढ़ा, लेकिन उत्पादन में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं होने से काश्तकारों की आर्थिकी में सुधार नहीं हो पाया है।

    उद्यान विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो बीते कुछ सालों में जिले में सेब बागानों का रकबा करीब एक हजार हेक्टेयर बढ़ चुका है, लेकिन इसके सापेक्ष उत्पादन में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है। बीते वर्षों भी जिले में बेमौसम , ओलावृष्टि और बीमारियों के चलते उपला टकनौर क्षेत्र में ही सेब की करीब अस्सी फीसदी फसल बर्बाद हो गई थी। इस बार भी अभी तक अतिवृष्टि एवं ओलावृष्टि से सेब बागवानों का भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में सेब बागवानी को किसानों की आर्थिकी की रीढ़ बनाने के लिए संबंधित विभागों से तकनीकी सपोर्ट और बदलते मौसम के अनुसार सेब की प्रजातियों के चयन की जरूरत महसूस हो रही है।