मध्य हिमालयी क्षेत्र के 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर सुर्ख लाल रंग का बुरांश दिखायी देना आम बात है लेकिन इसी उंचाई पर सफेद रंग का बुरांश खिलना लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। इस प्रजाति का बुरांश 1800 मीटर से 2900 मीटर की ऊंचाई पर खिलता है।
यह कुदरत का करिश्मा ही है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला सफेद बुरांश का फूल जोशीमठ ब्लॉक में समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सेलंग गांव में खिला है। लोग हैरत में हैं कि आखिर यह सफेद बुरांश इतनी कम ऊंचाई पर कैसे खिला।
हिमालयी क्षेत्र में खिलने वाले सफेद बुरांश के पेड़ आमतौर पर लाल बुरांश के पेड़ की तुलना में बौने होते हैं। मगर यहां सफेद बुरांश का पेड़ लगभग 20 मीटर ऊंचा है, जबकि सामान्य पेड़ पांच से छह मीटर ऊंचे होते हैं। सेलंग निवासी कल्पेश्वर भंडारी बताते हैं कि पहाड़ के भूगोल से परिचित हर व्यक्ति इस बुरांश को देखकर आश्चर्यचकित है। लिहाजा इस दुर्लभ पेड़ को संरक्षित किए जाने की जरूरत है। वन विभाग को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।
इस बारे में राजकीय महाविद्यालय कर्णप्रयाग में वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर विश्वपति भट्ट कहते हैं कि कभी-कभी किन्हीं कारणों से सफेद बुरांश का बीज निचले स्थानों पर पहुंच जाता है। अलग एन्वायरनमेंटल सेटअप के कारण इसके पेड़ की प्रथम व द्वितीय पीढ़ी में मॉर्फाेलॉजिकल बदलाव आ जाता है। यही नहीं, पांचवीं व छठी पीढ़ी में तो आनुवांशिक गुणों के बदलने की भी संभावना रहती है। ऐसे में यह नई प्रजाति या सब प्रजाति बन जाती है। प्रो. भट्ट के अनुसार सफेद बुरांश का यह पेड़ अभी प्रथम पीढ़ी का है यानी इसमें सिंगल स्टेम है। लिहाजा यह बदलाव अस्थायी बदलाव माना जाएगा।
यह सफेद बुरांश रोडोडेंड्रॉन कैम्पेनुलेटम प्रजाति का है। स्थानीय भाषा में सफेद को लोग चिमुल, रातपा जैसे नामों से जानते हैं। छह माह बर्फ की चादर ओढ़े रहने पर मार्च आखिर से जब बर्फ पिघलनी शुरू होती है, तब सफेद बुरांश के तने बाहर निकलते हैं और इन पर फूल खिलने लगते हैं। सामान्यतौर पर सफेद बुरांश के फूल आठ से दस दिन तक खिले रहते हैं। कई जगह देर से बर्फ पिघलने पर यह देर से भी खिलता है।
वन क्षेत्राधिकारी नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क धीरेश चंद्र बिष्ट कहते हैं कि यह लाल बुरांश की ही प्रजाति है। आनुवांशिक गुणों में बदलाव के चलते यह सफेद बुरांश की प्रजाति में बदल गया होगा। बिष्ट दावा करते हैं कि देश में ऐसा पेड़ कही नहीं है। इसलिए वन विभाग इसको संरक्षित करेगा।