सराहनीय कदम: वनों को आग से बचाने के लिए महिलाएं कर रही पिरूल एकत्र

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women collecting pine needles to avoid forest fire incidents
गोपेश्वर,  जंगलों को बचाने में पहाड़ की महिलाओं की अहम भूमिका रही है। चिपको आंदोलन इसका जीता जागता उदाहरण है। रैणी गांव की चिपको नेत्री गैरादेवी के नेतृत्व में महिलाओं ने पेड़ों पर चिपक कर पेड़ों को नहीं काटने देने आंदोलन किया था। इसके साथ ही पूरे विश्व को जंगलों को बचाने का संदेश भी दिया था।
आजकल चमोली जिले के जंगलों में भीषण आग लगी है तो भला महिलाएं कैसे चुप बैठ सकती हैं। चमोली जिले के घाट विकास खंड के राजबगठी की महिला मंगल दल ने आग से जंगलों को कैसे बचाया जा सके। उसके लिए जंगल से पिरूल (चीड़ के पत्ते) एकत्र करना शुरू कर दिया है, ताकि आग न लगे सके।
चमोली जिले के जंगलों में लगी आग भीषण रूप ले रही है। वन विभाग भी आग पर काबू नहीं पाने में असमर्थ दिखाई दे रहा है। पहाड़ की आर्थिकी का अधिकांश हिस्सा जंगलों से ही जुड़ा है। मवेशियों को चारा-पत्ते से लेकर खाना बनाने के लिए जलावनी लकड़ी की उपलब्धता जंगलों पर ही निर्भर है। ऐसे में जंगलों में लगी आग से चारा-पत्ते के साथ ही सूखी लकड़ियां भी समाप्त हो रही हैं। महिलाओं को सबसे ज्यादा कष्ट उठाना पड़ता है।
महिलाओं ने अब जंगलों को बचाने के लिए आगे आना शुरू कर दिया है। राजगबठी की महिला मंगल दल अध्यक्ष मुनि देवी रावत, जानकी देवी रावत, रेखा देवी, शारदा देवी, उमा देवी, भगदे देवी का कहना है कि जंगल हमारी आर्थिकी का हिस्सा हैं और इनको बचाना हमारा दायित्व है। जंगलों से हमारे मवेशियों को घास, चारा, जलावनी लकड़ी आदि उपलब्ध होता है। यदि जंगलों में आग लगती है तो घास चारा तो समाप्त हो रही रहा है। जंगली जानवरों को भी नुकसान पहुंच रहा है।
महिला मंगल दल का मानना है कि जंगलों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण चीड़ के पत्ते अर्थात पिरूल है। पिरूल पर लगी आग को काबू पाना आसान नहीं होता है। इसलिए इसका निस्तारीकरण करना ही जरूरी है। महिलाओं का कहना है कि उन्होंने आसपास के जंगल से पिरूल एकत्र कर उसे एक स्थान पर एकत्र किया है। ताकि जंगलों को आग से बचाया जा सके।
ग्रामीण महिलाएं किस उपयोग में लाती है पिरूल
ग्रामीण महिलाऐं पहले से भी पिरूल का उपयोग करती रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग गौशालाओं में मवेशियों के गोशाले में बिछाने के रूप में भी किया जाता है। इसके सड़ने  के बाद इसका उपयोग खेतों में खाद के रूप में भी किया जाता है। राजबगड़ी की महिलाओं का कहना है कि सरकार को पिरूल को एकत्र करने के लिए कोई ठोस योजना बनाने की आवश्यकता है ताकि इसका निस्तारण हो सके।