समाज को बेहतर होने के लिये लगातार बदलने की ज़रूरत है। पिछले दिनों सेशल मीडिया पर महिलाओं के शोषण के विरोध में #metoo कैंपेन को जिस तरह से न केवल आम महिलाओं बल्कि जानी मानी हस्तियों का समर्थन मिला उससे ये साफ है कि हमारे समाज को महिलाओं को उनका सही स्थान और मान सम्मान देने के लिये अभी काफी लंबा सफर तय करना है। समय आ गया है कि न केवल महिलाऐं बल्कि पूरा समाज साथ आये और #PressforProgress करे।
महात्मा गांधी ने कहा था कि “जो बदलाव आप देखना चाहते हैं वो खुद बने”। हमें महिलाओं को भी अपने लिये समाज में जगह बनाने के लिये खुद को ही अस बदलाव को हथियार बनाने की ज़रूरत है। समाज के अंदर रहने वाली महिलाओं के तौर पर ये ज़रूरी है कि हम साथ आयें और तय करें कि हमें अपने लिये क्या चाहिये। हम या तो महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को चुप चाप सहते रहें या फिर आगे बढ़कर महिलाओं की बेहतरी के लिये क्या किया जाये ये तय करें।
मैं एक मनोवैज्ञानिक हूं और आज बाकी सब बातें छोड़कर मैं केवल महलाओं की मानसिक सेहत के बारे में बात करना चाहूंगी। महिलाओं की मानसिक सेहत के बारे में ये कुछ खा बातें हैं।
- मर्दों की तुलना में महिलाओं में डिप्रेशन, एन्गजाईटी जैसी मानसिक बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है।
- महिलाओं में महावारी, गर्भावस्था, जन्म देते समय या मैनोपोस के समय मानसिक बीमारियों का खतरा ज्यादा हो जाता है।
- दुनिया में महिलाओं पर हो रहे सैक्स संबंधी हिंसा की दर काफी ज्यादा है जिसके चलते हमारे यहां महिलाओं में पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रैस डिसऑर्डर (PTSD) की दर भी काफी ऊंची है।
- मानसिक बीमारियों से झूझ रही महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा इसके समाधान के लिये मदद लेने को आगे नही आता है।
ये सारे तथ्य इस तरफ इशारा करते हैं कि हमारे समाज में जेंडर सेंसिटिव उपचारों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है ताकि ज्यादा से ज्यादा महिलाऐं मदद के लिये आगे आ सकें। हमारे देश में महिलाओं के जीवन में बहुत सारी तरह की ज़िम्मदारियां आती हैं जिसके कारण वो अलग अलग तरह के अनुभवों से गुज़रती हैं। ज्यादातर महिलाऐं अपने आप से पहले अपने परिवार और पारिवीरिक जिम्मेदारियों को तरजीह देती हैं।
इसके कारण महिलाओं को होने वाले जीवन के अनुभव उनके आसपास की संस्कृति, रस्मों रिवाज़ से जुड़े होते हैं। इस लिये ये आवश्यक है कि महिलाओं के लिये मदद भी इसा परिवेश से आने वाली उनके नज़रिये को ध्यान में रखकर की जाये। ये बात शौध में साबित हो चुकी है कि मानसिक सेहत का असर किसी भी इंसान की पूरण सेहत पर गहरा असर डालता है। इसलिय महिलाओं के लिये समाज में अपना रोल पूरी क्षमता से निभाते रहने के लिये बेहद ज़रूरी है कि वो अपनी सेहत और खास तौर पर मानसिक सेहत का ध्यान रखें।
जी हां ब हमें #PressforProgress करने की ज़रूरत है जिसमें महिलाओं की मानसिकसेहत के बारे में गंभीरता से सोचना बेहज ज़रूरी है। इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला हो या पुरुष सभी को महिलाओं की मानसिक सेहत पर ध्यान देने के बीड़ा उठाने की ज़रूरत है।
(डॉ कामना छिब्बर एक मनोचिकित्सक हैं और फोरटिस हेल्थकेयर के मनोरोग विभाग की निदेशक हैं। डॉ छिब्बर पिछले दस सालों से मनोरोग के क्षेत्र में काम कर रही हैं। इनसे संपर्क करने के लिये [email protected] पर लिखें )