उत्तराखंड की मातृशक्ति दशको से पहाड़ी जीवन और संस्कृति का एक अभिन्न अंग रही हैं। पहाड़ के कठनाी भरे जीवन में भी अपना परिवार और कुनबे को अपने मजबूत इरादों से महिलाऐं सींचती रही हैं। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, और ाये दिन महिलाओं की सफलता की नई कहानियां हमे प्रेरणा देती रहती हैं।
एक ऐसी ही कहानी है टिहरी के छोटे से इलाके चोप्रियल और चुराधर गांव की महिलाओं की, जिन्नेहोने दुर्गम इलाकों में फूलों की खेती कर न केवल एपनी लिये आजीलिका का साधन खोजा बल्कि इसे एक व्यवसाय के रूप में भी पेश किया।
कभी बंजर रहने वाले इन गामवों के खेत, अब गेंदे के फूल की खेती से लहलहा रहें और साथ ही यहां की औरतों के लिए आर्थिकी का साधन भी बन रहे हैं।
चंबा ब्लॉक के चुराधर और चोप्रियल गांव में, जो खेत कभी जंगली घास से भरे थे, वे अब पीले और खूबसूरत गेंदें के फूलों से लबरेज़ रहते हैं। इंटीग्रीटी आजीविका परियोजना के तहत इन महिलाओं ने गेंदे के फूलों की फसल तैयार की है। आजीविका परियोजना ने गांव की महिलाओं के समूहों में कार्यक्रमों का आयोजन किया और उन्हें फूलों की खेती करने के बारे में बताया, जो लगाने और उगाने में आसान थे और पूरे साल इनकी खासी डिमांड भी रहती है।
आजीविका परियोजना ने हॉर्टिकल्चर विभाग के सहयोग से प्रशिक्षण के साथ-साथ महिलाओं को फूलों के बीज भी उपलब्ध कराये। इस साल अप्रैल में, महिलाओं ने पुसा बसंती वेरायटी की नर्सरी तैयार की है और एक बार पौधे तैयार होने के बाद उन्हें एक सप्ताह के अंतर पर खेतों में ट्रांसप्लांट किया जाएगा।
पहली फसल तैयार होने के साथ ही, महिलाओं ने हाल ही में ऋषिकेश में फूलों का एक क्विंटल का ऑर्डर भेजा और उससे मिले पैसे आपस में बांट लिए। इतना ही नहीं उन्हें पुसा बसांति वेरायटी के फूलों के दो क्विंटल का पहला ऑडर्र भी मिला है जो नवंबर के मध्य तक खिल कर तैयार हो जाऐंगे। उसके बाद फूलों की एक और फसल तैयार की जाएगी जिससे गांवों के दर्जन परिवारों का जीवनयापन हो सके।
महिला किसान इस बात को मानती हैं कि फूलों की खेती कम मेहनत में तैयार हो जाती है इससे बाजार में अच्छा फायदा भी होता है। परियोजना निदेशक डॉ हीराबल्लभ पंत, हमें बताते हैं, “यह केवल महिलाओं के कड़ी मेहनत के कारण संभव हुआ है। फूलों की खेती एक अच्छा व्यवसाय है और महिलाओं के लिए इसमें टैक्स भी कम लगता है।”
चुरेरधर गांव की शकुंतला देवी हमें बताती हैं कि, “मुझे फूल पसंद हैं और यह बहुत ही अच्छा काम है।इसके जरिए हम कम मेहनत में अच्छा पैसा कमाते है, मैं जो कर रही हूं उससे खुश हूं और अन्य महिलाओं को भी हमारे साथ शामिल होने के लिए तैयार करने की कोशिश करुंगी।
जहां एक तरफ देशभर में महिलाओं को किसानों की श्रेणी में डालने को लेकर बहस चल रही है वहीं इन गांवों की महिलाओं ने ये साबित कर दिया है कि नेता और अधिकारी कुछ बी कहें पर महिलाऐं घर के साथ साथ खेतों में भी मर्दों से कम नही हैं।